Mithun Lagana : मिथुन राशि का अर्थ है जोड़ा।इस राशि के तारों को मिलाकर यदि काल्पनिक रेखाएँ खींची जाएं तो स्त्री और पुरुष की आकृति का निर्माण होता है।अतः इसका नाम जोड़ा रखा गया। इस राशि का विस्तार 60°-90° होता है।यह मृगशिरा के 2 चरण,आर्द्रा के 4 चरण और पुनर्वसु के 3 चरण से मिलकर बनती है।मृगशिरा का दशा स्वामी मंगल ,आर्द्रा का दशा स्वामी राहु , पुनर्वसु का दशा स्वामी गुरु होता है। इस राशि में सूर्य लगभग 15 जून से 16 जुलाई तक रहता है।इस राशि का स्वामी बुध है। इस राशि में कालपुरुष के अनुसार दोनों कंधे, गला, बाजू आते हैं।
Mithun Lagana में जन्मे जातक अधिक बातूनी तो होते ही हैं एवं भाषण शैली में भी ये निपुण होते हैं। विधा एवं ज्ञानार्जन की ओर इनमें विशेष अंदरुनी रूचि होती है, इसी कारण साहित्य से इनका विशेष जुड़ाव रहता है। ऐसे जातक जज, वकील, तार्किक, कलाकार, परामर्शदाता, नीतिज्ञ अथवा कारोबार में लाभ प्राप्त करने वाले होते हैं। ऐसे जातक कभी भी एक कार्य करने से संतुष्ट नहीं होते अतः एक साथ कई कई कार्य प्रारम्भ कर लेते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप इनके कार्यों को पूरा होने में प्रायः देरी हो जाया करती है। परिश्रम के अनुरूप धनार्जन का लाभ इन्हें प्राप्त नहीं होता, इस कारण ये हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। अस्थिर मति होने के कारण ऐसे जातक किसी कार्य विशेष में दक्ष नहीं हो पाते हैं, यदि ऐसा हो, तो अपवाद स्वरूप ही हो सकता है। इनका भाग्योदय 24, 25, 32, 33 और 35 वर्ष में होता है।
Mithun Lagana में जन्मे जातक प्रबल बुद्धि से युक्त एवं वाचाल प्रवृत्ति वाले होते हैं। इनकी देह दुबली पतली तो नहीं होती है किन्तु ये लम्बे कद के होते हैं। इनका रंग खुला हुआ तथा चेहरा भरा हुआ होता है। इनके सिर के केश काले एवं पतले होते हैं, किन्तु दाढ़ी मूंछों के बाल प्रायः नुकीले होते हैं। ऐसे जातकों की नाक छोटी होती है एवं इनके नेत्र सुन्दर होते हैं। मिथुन लग्न वाले जातक कुछ आगे को झुक कर चलते हैं, जिस कारण इनकी कमर कुछ आगे को झुकी हुई सी प्रतीत होती है। इनको मूत्रस्थली, गुर्दा, गुप्त रोग एवं कमर सम्बन्धी रोगों एवं विकारों से ग्रस्त होने की सम्भावना रहती है। इस लग्न में जन्मे जातक अस्थिर किन्तु मौलिक विचारों से युक्त होते हैं, इनकी बुद्धि बड़ी दूरदर्शी, तीक्ष्ण एवं तार्किक होती है, ये सदैव प्रसन्न चित्त रहने वाले एवं विनोदी स्वभाव के होते हैं, ये मधुर वाणी बोलने वाले किन्तु चपल एवं स्पष्ट वक्ता होते हैं, ये लज्जाशील प्रवृत्ति के होते हैं, ये खेलों में रूचि रखने वाले एवं बड़ी शीघ्रता से किसी को मित्र बनाने वाला होता है। मेष, मिथुन एवं कुम्भ लग्न वाले व्यक्तियों के साथ इनकी खूब जमती है।
शुभ ग्रह : लग्न और चतुर्थ का स्वामी होकर बुध शुभतायुक्त है। शुक्र पंचमेश होकर अति शुभ है। शनि भी नवमेश होकर शुभ हो जाता है। इन ग्रहों की स्थिति कुंडली में अच्छी हो तो इनकी दशा-महादशा व प्रत्युंतर बहुत फलकारक होता हैं। यदि ये ग्रह कुंडली में अशुभ स्थानों में हो तो योग्य उपाय करना चाहिए।
अशुभ ग्रह : तृतीयेश सूर्य, पष्ठेश और एकादशेष मंगल तथा सप्तमेश-दशमेश शुभ नहीं होते। इनकी दशा-महादशाएँ तकलीफदेह हो सकती है। अत: इनके शांति उपाय करना चाहिए।
ALSO READ:- मेष लगन वाले लोगों की विशेषताएँ I